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ऑलराउंडर्स

सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :219
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7457
आईएसबीएन :978-81-237-4957

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क्रिकेट में ऑलराउंडर वही होता है, जो टेस्ट मैच में बल्लेबाजी, गेंदबाजी के साथ-साथ क्षेत्ररक्षण में भी पारंगत हो...

All Rounders - A Hindi Book - by Suryaprakash Chaturvedi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शब्दकोश में हरफनमौल यानी ऑलराउंडर का अर्थ देखें तो पाएंगे कि प्रत्येक विधा में पारंगत या किसी भी विधा में पारंगत नहीं; दोनों ही तरह के व्यक्ति ऑलराउंडर कहलाते हैं। क्रिकेट में ऑलराउंडर वही होता है, जो टेस्ट मैच में बल्लेबाजी, गेंदबाजी के साथ-साथ क्षेत्ररक्षण में भी पारंगत हो। भले ही उसके नाम कोई बड़ा रिकार्ड दर्ज न हो, लेकिन उसमें अपनी दम पर टेस्ट मैच का नतीजा बदलने की क्षमता हो। आज एकदिवसीय क्रिकेट की लोकप्रियता में टेस्ट मैचों की शास्त्रीयता लुप्त होती जा रही है और लप्पेबाजी करने वालों की पूछ बढ़ गई है। लेकिन असली ऑलराउंडर किसी भी हाल में अपनी गेंद, बल्ले या फील्डिंग से मैच का रुख बदल देता है।

यह पुस्तक दुनियाभर के ऐसे ही 16 जन्मजात व नैसर्गिक प्रतिभा के धनी क्रिकेट खिलाड़ियों के व्यक्तित्व और योगदान का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है। इनमें कीथ मिलर, गारफील्ड सोबर्स, रिचर्ड हेडली, जेक्स कैलिस आदि के साथ भारत के तीन महान खिलाड़ियों–कपिल देव, वीनू मनकड़ और सलीम दुर्रानी को शामिल किया गया है। पुस्तक बताती है कि ये सभी ऑलराउंडर किस तरह संघर्षों, चोटों, विषम परिस्थितियों से जूझते हुए इस मुकाम तक पहुंचे हैं। बड़े-बड़े रिकार्ड वाले सैकड़ों खिलाड़ियों में से इन 16 को ही चुनने का कारण प्रत्येक अध्याय में स्पष्ट हो जाता है।

कीथ मिलर


कीथ रॉस मिलर का जन्म 28 नवंबर, 1919 को मेलबॉर्न, आस्ट्रेलिया में हुआ। उनका नाम आस्ट्रेलिया के दो महान योद्धा, विमान चालक कीथ व रॉस के नाम को मिलाकर किया गया था क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ये दोनों विमान चालक अपने हैरतअंगेज़ कारनामों के लिए बेहद लोकप्रिय थे। मिलर भी एक प्रशिक्षित विमान चालक थे और उन्होंने भी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध की विभीषिका तथा विध्वंस को नजदीकी से देखा था। तभी उन्हें जीवन का महत्त्व समझ में आया और लगा कि जिंदा रहने के लिए मनुष्य को स्वयं को हर कीमत पर बचाना आना चाहिए।
 
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सर्वाधिक मूल्यवान एवं प्रतिभावान क्रिकेट खिलाड़ियों में मिलर का स्थान बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। वे आस्ट्रेलिया के लिए 55 टेस्ट खेले और उनमें से 12 में उन्होंने आस्ट्रेलिया की जीत में बहुमूल्य योगदान दिया, जबकि 17 में उनकी अहम भूमिका रही एवं 27 में उनकी संघर्ष क्षमता तथा साहस के बल पर आस्ट्रेलिया ने या तो टेस्ट ‘ड्रा’ करवाए अथवा हार से बचने में सफलता पाई। कभी अपने से लगभग चार दशक पहले आस्ट्रेलिया के महान ऑलराउंडर माने जाने वाले एम.ए. मोबल के बाद मिलर को ही आस्ट्रेलिया का महानतम ऑलराउंडर माना जाता है। लेकिन चूंकि मेरा उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के ऑलराउंडर्स का मूल्यांकन करना है, अतः विषय के लिहाज से मिलर ही पहले महान ऑलराउंडर हैं। अगर यह कहा जाए कि विश्व युद्ध के बाद मिलर ही ऐसे एकमात्र आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी थे जिन्होंने अपनी अद्वितीय ऑलराउंडर खेल प्रतिभा से कभी अपनी आतिशी बल्लेबाजी तो कभी घातक व धारदार गेंदबाजी द्वारा मैच को सर्वाधिक बार निर्णायक मोड़ दिया, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। जिस तरह युद्ध के दौरान विमान चालक के रूप में उन्होंने जांबाज सैनिक की ख्याति प्राप्त की थी उसी प्रकार क्रिकेट मैदान पर भी अपने हैरतअंगेज़ प्रदर्शन से वे दर्शकों को आंदोलित व प्रेरित करते रहे। अपने पिता के चार बच्चों में से सबसे छोटे होने के कारण वे परिवार के लाड़ले तो थे ही। उन्हें अपने मन माफिक काम करने की आजादी थी। मगर 6 फुट व 1 इंच लंबे कद के बावजूद उन्हें आस्ट्रेलियाई वातावरण में तो औसत लंबा ही माना जाता था। शुरुआत में ही ऊबड़-खाबड़ पिचों पर भी गेंद को जोर से मारने की आदत पड़ जाने का फायदा उन्हें बाद में भी मिला। स्कूली दिनों में उन्हें पहले मैच में केवल एक बल्लेबाज के रूप में ही खिलाया गया व गेंदबाजी का मौका ही नहीं दिया गया। उन्हें अभ्यास करता देख जब ई.व्ही. कैरोल ने अपने क्लब साउथ मेलबोर्न में उन्हें ले लिया। स्कूल में तत्कालीन आस्ट्रेलियाई कप्तान वुडफुल ने जब पुरस्कार में कप दिया तो मिलर को ऊपर कूदकर वह कप लेना पड़ा। लेकिन 16 से 17 की उम्र के बीच उनका कद आश्चर्यजनक रूप से बढ़ा।

साउथ मेलबोर्न टीम में मिलर की ख्याति एक जोरदार प्रहार करने वाले बल्लेबाज की थी। तस्मानिया के खिलाफ 1939-40 में 18 साल की उम्र में अपनी 181 रनों की पारी के बाद उन्हें विक्टोरिया के प्रथम एकादश में शरीक कर लिए गए। और फिर अपने चौथे मैच में ही उन्होंने ग्रिमेट, वार्ड, व वेट जैसे ख्यातनाम गेंदबाजों के खिलाफ उन्होंने 108 रन ठोक दिए। उसी मैच में ब्रेडमेन ने 267 रन बनाए। ब्रेडमेन मिलर की बल्लेबाजी से बड़े प्रभावित हुए। मिलर को भविष्य का आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज तो माना जाने लगा किंतु उनकी गेंदबाजी की चर्चा 1945 से ही तब हुई जब उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ आस्ट्रेलियाई सर्विसेस के लिए विकेट लिए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही मिलर को मैच विजेता गेंदबाज की ख्याति मिली। इस तरह मैच-दर-मैच उनकी ख्याति बढ़ती गई। एक अन्य मैच में डोमिनियंस के लिए इंग्लैंड के खिलाफ लॉर्ड्स पर उन्होंने 2 घंटे 45 मिनट में 185 रन किए जबकि उसी मैच में उन्होंने व लैरी कांस्सेटाइन ने मिलकर सिर्फ 45 मिनट में 117 रनों की भागीदारी की।

प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध में अपनी आक्रामक क्षमता के कारण ही आस्ट्रेलियावासियों ने ऐसे साहसिक कार्य किए कि वे जीते जी किवदंती बन गए। युद्ध के दौरान क्रिकेट तो खैर पृष्ठभूमि में चला गया। जाना ही था। क्योंकि तब क्रिकेट बहुत छोटा मुद्दा था। क्रिकेट के कारण यद्यपि युद्ध से तो निजात मिल जाती थी किंतु स्मरणीय कुछ नहीं रह पाता था। युद्ध के माहौल के कारण लड़ाई की खबरें ही दिलो-दिमाग पर हावी रहती थीं। द्वितीय महायुद्ध के कारण समूचे विश्व से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट गतिविधियां स्थागित रहीं। और जब टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला जा रहा था तब अनधिकृत टेस्ट मैच उसकी आंशिक पूर्ति जरूर कर रहे थे। 1939 से 1946 तक यही सिलसिला चला। मिलर खुद रॉयल एयर फोर्स में सार्जेंट पायलेट थे। अतः तब उनकी प्राथमिकता भी एयर फोर्स थी, क्रिकेट नहीं। लेकिन तब भी वे सिर्फ 18 की उम्र में आस्ट्रेलियाई टेस्ट गेंदबाजों के खिलाफ शतक बनाकर अपनी धाक जमा ही चुके थे व 1941 की शुरुआत में वे विक्टोरिया टीम के नियमित सदस्य बन चुके थे। लेकिन युद्ध की आवश्यकताओं के कारण उन्हें क्रिकेट छोड़ काम पर लौटना पड़ा। लेकिन ताज्जुब की बात है कि जिन साढ़े तीन क्रिकेट मौसम में वे विक्टोरिया के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेले उनमें विक्टोरिया ने 7 गेंदबाजों को तो आजमाया लेकिन मिलर को गेंदबाजी करने के लिए केवल एक ही ओवर दिया। 1953 में एडिलेड टेस्ट में उनकी गेंदबाजी प्रतिभा सामने आई और तभी क्रिकेट समीक्षकों को लगा कि उन्हें तो विश्व के श्रेष्ठतम तेज गेंदबाजों में शुमार किया जाना चाहिए। मिलर को खुद भी इस बात पर आश्चर्य होता था कि वे क्रिकेटर कैसे बन गए। वास्तव में उन्हें तो एक घुड़सवार और घुड़सवारी प्रेमी होना चाहिए था। घुड़सवारी उनका प्रिय शौक भी रहा। लेकिन साल भर में जब उनका कद एक फुट दो इंच बढ़ गया तो वे आस्ट्रेलिया के प्रमुख क्रिकेटर ही नहीं बल्कि प्रमुख फुटबॉलर भी बन गए।


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